चिकनगुनिया मौसमी बीमारियों में से एक है। इस बीमारी का असर एक दो दिन नहीं बल्कि कई सालों से रह सकता है। ऐसे में चिकनगुनिया के दौरान सही इलाज लेकर इसे पूरी तरह से ठीक करना बहुत जरूरी है। आप आयुर्वेद का सहारा लेकर चिकनगुनिया का जड़ से इलाज कर सकते हैं और चिकनगुनिया के इफेक्ट्स को कम कर सकते हैं। जानते हैं उस काढ़े के बारे में, जिससे चिकनगुनिया के असर को काफी कम किया जा सकता है।
चिकनगुनिया का अभी तक कोई इलाज नहीं है और इसके इलाज का मुख्य उद्देश्य बुखार और दर्द का सही प्रबंधन करना होता है। अंग्रेजी दवाइयों के माध्यम से भी इसके लक्षणों को रोकने की कोशिश की जाती है और चिकनगुनिया का विशेष इलाज नहीं किया जाता है। इससे राहत के लिए आपको लंबे समय तक इसका ध्यान रखने की आवश्यकता है।
आयुर्वेद में चिकनगुनिया के लक्षणों को लेकर कई ऐसे नुस्खे मौजूद हैं, जिसके माध्यम से मरीज को होने वाले जॉइंट पेन को कम करने में मदद मिलती है। तुलसी, गुरुति, चिरायता, मुलैठी, कालमेघ, सुष्ठि, कालीमिर्च, भुंइ आंवला, पपीता के पत्ते, भ्रंगराज, वासा एवं इलायची का काढा देने से रोगी को फायदा मिलेगा। अगर कमजोरी ज्यादा लग रही हो तो अश्वगंधा, पला व शताबरी का मिश्रित वल्य योग देने से मिलेगा लाभ मिलेगा।
साथ ही चिकनगुनिया, डेंगू या किसी भी वायरल बीमारी में गिलोय का तना और नीम, हरसिंगार, तुलसी व कालमेघ की पत्तियां रामवाण साबित होती हैं। इनमें से किसी एक का भी उपयोग किया जा सकता है और सबके मिश्रण का भी उपयोग खाली पेट में दो बार करने से मरीज ठीक हो जाता है। वहीं मच्छरों की समस्या दूर करने के लिए गूगुल, राल, लोबान, वच, राई को समान मात्रा में लेकर गुरुच, चिरायता, सरसों एवं नीम की पत्ती को दोगुनी मात्रा में मिश्रित करके इस सामग्री से धुआं करें।