पूरे गांव को देसी घी का भोज… मालामाल करने वाली ‘लाडली’ का ऐसे हुआ अंतिम संस्कार

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चरखी दादरी : हरियाणा के चरखी दादरी में एक किसान परिवार की तीन पीढ़ियों को करीब 24 वर्ष तक मालामाल करने वाली भैंस के निधन पर विधि विधान से क्रिया कर्म किया गया. उसकी मौत के बाद न केवल अस्थियां विसर्जित की गईं बल्कि सत्रहवीं की भी रस्में निभाई गईं. भैंस को “लाडली” के नाम से पुकारने वाले किसान परिवार ने मृत्युभोज का आयोजन भी किया. इसके लिए बाकायदा नाते-रिश्तेदारों के अलावा ग्रामीणों को आमंत्रण भी भेजा गया और लोगों को देशी घी का लजीज खाना परोसा गया. किसान परिवार के अपने पालतू पशु के प्रति प्रेम की चर्चा चारों ओर हो रही है.

बता दें कि गांव चरखी निवासी किसान सुखबीर सिंह के पिता रिसाल सिंह करीब 28 वर्ष पहले एक भैंस लेकर आए थे. इससे पैदा हुई कटिया का पालन-पोषण किया और किसान के घर भैंस ने लगातार 24 बार कटिया को जन्म देकर रिकार्ड बनाया. 28 साल पहले आई इस भैंस का नाम दिया गया था “लाडली”. इस भैंस का दूध परिवार की तीन पीढ़ियों ने पिया और उससे जन्म लेने वाले बच्चों को तैयार करते हुए काफी पैसा भी कमाया.

पिछले दिनों अपनी पालतू भैंस का निधन होने पर परिवार ने पूरा शोक मनाते हुए विधि विधान से सभी क्रिया क्रम करते हुए अस्थियां भी विसर्जित कीं. वहीं भैंस की सत्रहवीं पर किसान परिवार ने अपने घर पर मृत्युभोज का आयोजन किया.

किसान सुखबीर सिंह ने बताया कि वे अपनी भैंस को “लाडली” के नाम से पुकारते थे और उसे अपने परिवार का सदस्य मानते थे. उनकी तीन पीढ़ियों ने भैंस का दूध पिया है. भैंस ने अपने पूरे जीवन में लगातार 24 बार कटिया को ही जन्म देते हुए रिकार्ड बनाया है. सुखबीर सिंह के परिवार को अपनी भैंस से इतना प्यार था कि उसकी मौत के बाद सभी क्रिया-क्रम करते हुए मृत्युभोज का आयोजन करवाया गया.

किसान सुखबीर ने बताया कि भैंस के मृत्युभोज कार्यक्रम में देशी घी का खाना तैयार किया गया. इसमें चावल, लड्डू, जलेबी, गुलाब जामुन, सब्जी और पूरी शामिल रही. वहीं शादी की तरह गोल-गप्पे भी परोसे गए. किसान के अनुसार करीब चार सौ नाते-रिश्तेदार भैंस के मृत्युभोज कार्यक्रम शामिल हुए.

किसान सुखबीर सिंह के पिता रिसाल सिंह करीब 28 वर्ष पहले एक भैंस लेकर आए थे। जिससे पैदा हुई कटिया का पालन-पोषण किया और किसान के घर भैंस ने लगातार 24 बार कटिया को जन्म देकर रिकार्ड बनाया। “लाडली” भैंस का परिवार की तीन पीढ़ियों ने दूध पिया और उससे जन्म लेने वाले बच्चों को तैयार करते हुए काफी पैसा भी कमाया। पिछले दिनों अपनी पालतू भैंस का निधन पर होने पर परिवार ने पूरा शोक मनाते हुए विधि विधान से सभी क्रियाकर्म करते हुए अस्थियां भी विसर्जित की। भैंस की सत्रहवीं पर किसान परिवार ने अपने घर पर मृत्युभोज का ठीक उसी तरह आयोजन किया, जिस तरह परिवार के किसी सदस्य के मरने पर किया जाता है।

किसान सुखबीर सिंह ने बताया कि वे अपनी भैंस को “लाडली” के नाम से पुकारते थे और उसे परिवार का सदस्य मानते थे। भैंस से परिवार के लोगों को विशेष लगाव था। उनके मुताबिक करीब तीन दशक से भैंस ने परिवार का पोषण किया इसलिये किसान सुखबीर ने बताया कि भैंस के मृत्युभोज में चावल, लड्‌डू, जलेबी, गुलाब जामुन उन्होंने देसी घी में ही बनवाये थे। किसान के अनुसार आसपसा के इलाके के लोगों के अलावा करीब चार सौ नाते-रिश्तेदार भैंस के मृत्युभोज कार्यक्रम में शामिल हुए।

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