नई दिल्ली : G-20 के बाद से ही प्रस्तावित भारत-मध्य-पूर्व-यूरोप कॉरिडोर को लेकर चर्चाएं हैं। दरअसल, अब इसे चीन (China) के बेल्ड एंड रोड प्रोजेक्ट के प्रतिद्वंदी के तौर पर भी देखा जा रहा है। हालांकि, भारत सरकार ने इस बात से इनकार किया है। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने साफ किया है कि यह चीन की परियोजना से काफी अलग होने जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को इसकी घोषणा की थी।
वैष्णव ने कहा, ‘इस कॉरिडोर का अहम हिस्सा पीएम का सभी को साथ लेकर चलने का विजन है…।’ उन्होंने कहा कि BRI ने काफी शर्तें भी रखी हैं। जबकि, इस नए प्रोजेक्ट का कुछ हिस्सा शिपिंग कॉरिडोर होगा और बाकी हिस्सा रेलवे का होगा। उन्होंने कहा कि शामिल देश अपनी जरूरतों के हिसाब से इसे लेकर फैसला कर सकेंगे।
रेल मंत्री ने यह भी बताया कि बैंक के लिहाज से भी यह प्रोजेक्ट सुगम होगा और कई बड़े संस्थान यहां फंडिंग करने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘ट्रांसपोर्टेशन के जरिए इतना राजस्व आएगा कि इसमें लगने वाली लागत अपने आप ही निकल जाएगी और कोई भी देश कर्ज के जाल में नहीं फंसेगा।’ इस प्रोजेक्ट के तहत रेल, पोर्ट, बिजली, डेटा नेटवर्क और हाइड्रोजन पाइपलाइन्स आपस में जुड़ जाएंगी।
खास बात है कि इस प्रोजेक्ट के तहत संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, जॉर्डन और इजरायल समेत मध्य पूर्व के बंदरगाह और रेल नेटवर्क को जोड़ा जाएगा। खास बात है कि इसके जरिए भारत और यूरोप के बीच व्यापार की रफ्तार में 40 फीसदी का इजाफा होगा।
भारत के इस प्रस्ताव को अमेरिका का भी समर्थन हासिल है। विश्व पटल पर इसे स्पाइस रूट भी कहा जा रहा है। माना जा रहा है कि इसे बेल्ट एंड रोड का सामना करने के लिए तैयार किया गया है, जिसके जरिए चीन सिल्क रूट को दोबारा तैयार करने की मंशा रखता है। हालांकि, 10 साल बाद भी इसे लेकर यूरोपीय राष्ट्र पूरी तरह आश्वस्त नहीं हैं। सिर्फ जी-7 यानी 7 देशों ने इसपर हामी भरी थी और अब संभावनाएं हैं कि इटली इससे बाहर भी हो सकता है।