अंकारा : भारत में जी-20 शिखर सम्मेलन (G-20 summit) के दौरान भारत ने एक बड़ी कामयाबी हासिल की है। इस दौरान भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप कॉरिडोर पर सहमति बनी है। अभी इस कॉरिडोर का एक भी पत्थर नहीं रखा गया है, लेकिन इसका विरोध शुरू हो गया है। तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन ने सोमवार को इस गलियारे का विरोध किया। क्योंकि यह गलियारा सीधे तुर्की को बायपास करता है। एर्दोगन ने कहा, ‘हम कहते हैं कि तुर्की के बिना कोई गलियारा नहीं हो सकता।’
बता दें कि रविवार को भारत में जी-20 शिखर सम्मेलन में साथ आए पत्रकारों से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा, ‘तुर्की उत्पादन और व्यापार का एक महत्वपूर्ण आधार है। पूर्व से पश्चिम तक जाने वाली सबसे सुविधाजनक लाइन तुर्की से जाती है।’ इंडिया-मिडल ईस्ट-यूरोप कॉरिडोर (IMEC) में संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, जॉर्डन और इजराइल को एक रेल लाइन कनेक्ट करेगा। इजरायल के बंदरगाह हाइफा से शिपिंग लाइन से भूमध्य-सागर के रास्ते ग्रीस पहुंचा जाएगा।
इस गलियारे के MoU पर यूरोपीय संघ, भारत, सऊदी अरब, यूएई, अमेरिका और अन्य जी-20 देशों की ओर से हस्ताक्षर किया गया है। इस प्रोजेक्ट का प्रमुख लक्ष्य शिपिंग टाइम को 40 फीसदी कम करना, ईंधन और धन की बचत करना है, लेकिन यह प्रोजेक्ट सीधे-सीधे तुर्की को बायपास करता है। भारत से कोई भी सामान इस कॉरिडोर के जरिए पहले यूएई जाएगा और भी वहां एक रेल लाइन के जरिए कई देशों से होता हुआ हाइफा पहुंचेगा, जहां एक बार फिर शिप पर सामान लोड करना पड़ेगा।
तुर्की जमीन के जरिए यूरोप से जुड़ा है, इस कारण एर्दोगन यह मान कर चल रहे हैं कि बिना उसके यूरोप तक नहीं जाया जा सकता। हालांकि यह बात सही भी है। कई सदियों पुराना इतिहास बताता है कि तुर्की का भूगोल यूरोप तक पहुंचने के लिए महत्वपूर्ण है। एशिया के व्यापारी यूरोप और यूरोप के व्यापारी सदियों तक इसी रास्ते से आते-जाते रहे हैं। लेकिन भारत तुर्की पर भरोसा करके नहीं चल सकता। क्योंकि उसका झुकाव हमेशा पाकिस्तान की तरफ रहा है, जो भारत को मध्य एशिया तक पहुंचने नहीं देता। ऐसे में मित्र देशों के जरिए एक रास्ता भारत के लिए बेहद जरूरी है।