नई दिल्ली: बात सितंबर 1977 की है। आपातकाल खत्म हो चुका था। लोकसभा चुनावों में इंदिरा गांधी की सरकार जा चुकी थी और उसकी जगह जनता पार्टी की मोरारजी देसाई की सरकार आ चुकी थी। देश में जातीय भेदभाव को दूर करने के लिए तब सत्तारूढ़ दलों के नेताओं ने दिल्ली के कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में तीन दिनों की एक संगोष्ठी का आयोजन किया था।
उस संगोष्ठी के केंद्र में थे उस वक्त के बड़े राजनीतिक हीरो राज नारायण। राज नारायण उस वक्त मोरारजी देसाई की सरकार में स्वास्थ्य मंत्री थे। ये वही राज नारायण थे, जिन्होंने 1971 में रायबरेली से इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा था और इंदिरा के खिलाफ हाईकोर्ट में रिट पेटीशन दायर किया था।
1977 के लोकसभा चुनावों में राज नारायण ने इंदिरा गांधी को करीब 55 हजार मतों से हराया था। इसलिए राजनीतिक गलियारे में उनकी तूती बोल रही थी। जब राज नारायण ने उस संगोष्ठी में अपना भाषण शुरू किया तो उन्होंने कई बार हरिजन शब्द का इस्तेमाल कर उनके कल्याण की बात की थी। उस वक्त उस सभा में कई दलित नेता भी भैठे थे लेकिन किसी ने उसका न तो विरोध किया और न ही उन्हें इस बात का ध्यान दिलाया।
उस सभा में मायावती भी मौजूद थीं, जो बामसेफ से जुड़ी थीं। उस वक्त उनकी उम्र सिर्फ 21 साल थी। जब मायावती मंच पर आईं तो अपने संबोधन के शुरुआत में ही राज नारायण पर बरस पड़ीं। मायावती ने कहा कि जिन समाजवादी नेताओं को ये नहीं पता कि हरिजन शब्द अपमानजनक है, वह जातीय भेदभाव कैसे मिटा पाएंगे। उन्होंने बाबा साहब अंबेडकर का नाम लेते हुए कहा कि संविधान निर्माता ने भी हमारे लिए अनुसूचित जाति शब्द का इस्तेमाल संविधान में किया है, तो फिर कोई और नेता हमें हरिजन क्यों कहेगा।
मायावती की इस बात से वहां मौजूद लोग न सिर्फ तालियां बजाने लगे बल्कि जनता पार्टी और राज नारायण मुर्दाबाद के भी नारे लगाने लगे। इस घटना के बाद मायावती चर्चा में आ गईं। कांशीरीम के स्थापित बामसेफ ने उसे स्टार बनाना चाहा। बाद में कांशी राम मायावती के घर पहुंचे और उन्होंने मायावती को राजनीति की राह पकड़ा दी। उस वक्त वह स्कूल टीचर थीं और आईएएस एग्जाम की तैयारी कर रही थीं।