Vinod Khanna Birthday: बॉलीवुड से लेकर राजनीति तक तक ऐसा रहा विनोद खन्‍ना का सफर

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मुंबई : पाकिस्तान में जन्मे विनोद खन्ना के जीवन का तीसरा सबसे अहम पहलू राजनीति में शामिल होना रहा। विनोद खन्ना का जन्म 6 अक्टूबर 1946 में ब्रिटिश भारत के पेशावर, जो कि अब पाकिस्तान में है, में हुआ था. इनके पिता का नाम किशनचंद खन्ना और माता का नाम कमल खन्ना था. इनके पिता एक बहुत बड़े व्यापरी थे, जिनका व्यापार टेक्सटाइल, डाई और रसायन बाज़ार में फैला हुआ था. विनोद के जन्म के बाद कुछ ही समय में भारत का बंटवारा हो गया और इनके पिता अपने पूरे परिवार के साथ मुंबई आ गये.

पाकिस्तान में जन्मे विनोद खन्ना के जीवन का तीसरा सबसे अहम पहलू राजनीति में शामिल होना रहा। विनोद खन्ना साल 1997 में भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए थे और 1998 में गुरदासपुर संसदीय क्षेत्र से पहली बार सांसद चुने गए। 2014 के लोक सभा चुनाव में जीत दर्ज कर विनोद खन्ना चौथी बार संसद पहुंचे। इससे पहले 1999 और 2004 में हुए लोक सभा चुनाव में भी वह जीते थे।

वहीं 2009 के लोक सभा चुनाव में उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था। 2002 में वे संस्कृति और पर्यटन के केन्द्रीय मंत्री भी रहे। सिर्फ 6 माह पश्चात ही उनको अति महत्वपूर्ण विदेश मामलों के मंत्रालय में राज्य मंत्री बना दिया गया। खास बात यह है कि वे पंजाब के गुरदासपुर से भाजपा की तरफ से चुनाव लड़ते थे और यहां से चार बार सांसद रहे, पर वो आज सभी को छोड़कर चले गए। वे 70 वर्ष के थे और उन्होंने मुंबई के अस्पताल में आखिरी सांस ली।

विनोद की जिंदगी की कहानी फिल्मी स्टोरी से कम नहीं थी। साधारण परिवार से होने के बाद बॉलीवुड एक्टर बनने और फिर ओशो के आश्रम में माली बने। शादीशुदा जिंदगी खत्म करने को लेकर वो हमेशा ही सुर्खियों में रहे। पाकिस्‍तान से संबंध रखने वाले विनोद खन्‍ना ने एक पाकिस्‍तानी फिल्‍म गॉडफादर में मुख्‍य भूमिका निभाई, जो 2007 में रिलीज हुई।
अभिनेता एवं सांसद विनोद खन्ना

भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के बाद विनोद खन्ना का परिवार मुंबई आ गया था। मुंबई और दिल्ली में स्कूली पढ़ाई के बाद कॉलेज के दिनों के दौरान विनोद इंजीनियर बनना चाहते थे। पिता ने उनका एडमिशन कॉमर्स कॉलेज में भी करा दिया था, लेकिन विनोद का पढ़ाई में मन नहीं लगा। विनोद के अनुसार, कॉलेज लाइफ में उनकी कई गर्लफ्रेंड्स थीं। यहीं उनकी मुलाकात गीतांजलि से हुई। गीतांजलि विनोद की पहली पत्नी थीं। कॉलेज से ही उनकी लव-स्टोरी शुरू हुई थी।

विनोद के मुताबिक, एक पार्टी के दौरान उनकी मुलाकात सुनील दत्त से हुई थी। सुनील एक फिल्म के लिए अपने भाई के किरदार के लिए किसी नए एक्टर की तलाश में थे। उन्होंने विनोद खन्ना को वो रोल ऑफर किया। लेकिन जब ये बात उनके पिता को पता चली तो वह नहीं माने। हालांकि, विनोद की मां ने उनके पिता को इसके लिए राजी कर लिया और दो साल का वक्त दिया। पिता ने कहा कि दो साल तक कुछ ना कर पाए तो फैमिली बिजनेस ज्वाइन कर लेना।

ओशो से प्रभावित होकर विनोद खन्ना ने अपना पारिवारिक जीवन तबाह कर लिया था। विनोद अक्सर पुणे में ओशो के आश्रम जाते थे। यहां तक कि उन्होंने अपने कई शूटिंग शेड्यूल भी पुणे में ही रखवाए। दिसंबर, 1975 में विनोद ने जब फिल्मों से संन्यास का फैसला लिया तो सभी चौंक गए थे। बाद में विनोद अमेरिका चले गए और ओशो के साथ करीब 5 साल गुजारे। वो वहां उनके माली थे। वहां रहने के दौरान उन्होंने उनके टॉयलेट से लेकर जूठी थाली तक साफ की।
अमेरिका में विनोद खन्ना तकरीबन चार साल तक रहे और अमेरिका द्वारा ओशो आश्रम बंद करने के बाद इंडिया आ गए। पत्नी उन्हें तलाक देने का फैसला कर चुकी थीं। फैमिली बिखरने के बाद 1987 में विनोद ने फिल्म ‘इंसाफ’ से फिर से बॉलीवुड में एंट्री की। दोबारा फिल्मी करियर शुरू करने के बाद विनोद ने 1990 में कविता से शादी की। दोनों का एक बेटा साक्षी और एक बेटी श्रद्धा खन्ना है।

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