अयोध्या: देश भर की आस्था का केंद्र बन चुका अयोध्या एक बार फिर चर्चा में है। इस बार चर्चा भगवान राम और माता सीता की मूर्ति से जुड़ी है। जी हां, मूर्ति में बेहद खास पत्थर का इस्तेमाल होगा। ये पत्थर 600 साल पुराना और बेहद चमत्कारी बताया जा रहा है। माना जा रहा है कि ये पत्थर अभी एक लाख साल तक और बरकरार रह सकता है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक इस पत्थर में स्वयं भगवान विष्णु बसते हैं। इसका वर्णन रामचरितमानस में भी है। राम जन्मभूमि मंदिर के प्रधान पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास कहते हैं कि भगवान विष्णु ने ही त्रेता युग में भगवान राम का मानव रूप लेकर लीला की थी। ऐसे में शालिग्राम से भगवान राम की मूर्ति बनाए जाने का महत्व लोगों को समझ में आ रहा है।
अयोध्या में राम मंदिर गर्भगृह में भगवान राम और माता सीता यानी जानकी की मूर्ति स्थापित की जाएगी। इसे शालिग्राम पत्थर से बनाया जाएगा। ये पत्थर नेपाल से अयोध्या लाया जा रहा है। नेपाल में गडंकी नदी से दो बड़ी और विशाल शालिग्राम शिलाओं को निकाला गया है। इसका वजह 26 और 14 टन बताया जा रहा है। पत्थर की तलाश में एक टीम महीनों से जुटी थी। शालिग्राम पत्थर मुख्यता इन्हीं क्षेत्र में पाया जाता है। अधिकतर इसकी खोज मुक्तिनाथ काली गंडकी नदी के तट पर ही पूरी होती है। इसकी विशेष पहचान और महत्व है। साइंस के हिसाब से बात की जाए तो ये पत्थर एक तरह का जीवाश्म है। ये 33 प्रकार के होते हैं। वहीं धार्मिक महत्व के हिसाब से बात की जाए तो ये भगवान विष्णु का स्वरूप है।
शालिग्राम भगवान विष्णु का अवतार
शालिग्राम पत्थर से लोगों की धार्मिक आस्था जुड़ी हुई है। देश भर में इन पत्थरों को तलाश कर भगवान की मूर्ति के रूप में पूजा जाता है। धर्मिक मान्यताओं के अनुसार इस पत्थर को भगवान विष्णु के अवतार की संज्ञा दी गई है। शालिग्राम पत्थर को भगवान विष्णु यानी भगवान शालिग्राम माना जाता है। इसे किसी भी जगह स्थापित कर पूजा करने पर वहां लक्ष्मी जी का वास होता है। इन्हीं मान्यताओं को ध्यान में रखते हुए अयोध्या में शालिग्राम शिलाओं से भगवान राम की मूर्ति तैयार करने का फैसला लिया गया है।
क्या है शालिग्राम की कहानी
धार्मिक ग्रंथों की पौराणिक कहानियों में माता तुलसी और भगवान शालिग्राम का जिक्र है। कथा के अनुसार जलंधर नामक दैत्य ने माता पार्वती को अपनी पत्नी बनाने के लिए कैलाश पर्वत पर हमला कर दिया था। वहीं जलंधर को देवताओं से बचाने के लिए उसकी पत्नी वृंदा ने तपस्या शुरू कर दी। इससे देवता घबरा गए। ऐसे में भगवान विष्णु ने जलंधर का रूप धारण किया और वृंदा के सामने पहुंच गए। इसके बाद वृंदा ने सामने जलंधर को देख तपस्या छोड़ दी। इसी के बाद दैत्य जलंधर मारा जा सका। जब इसका वृंदा को पता चला तो उसने भगवान विष्णु को पत्थर बनने श्राप दे दिया। देव लोक के देवता इस पर वृंदा के पास पहुंचे और उन्हें श्राप मुक्त करने के लिए आग्रह किया। भगवान विष्णु को श्राप मुक्त तो कर दिया लेकिन वह खुद अग्नि में समाहित हो गईं। कहते हैं कि उनकी भस्म से माता तुलसी का जन्म हुआ। आगे चलकर माता तुलसी का विवाह विष्णु भगवान के अवतार शालिग्राम से हुआ। इसलिए आज भी इन पत्थरों का इतना ज्यादा धार्मिक महत्व है।
जल्द तैयारी की जाएगी भगवान राम की मूर्ति
राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण समिति के मुताबिक मंदिर के गर्भगृह में राम लला के बाल्य रूप के विग्रह के निर्माण को लेकर तेजी से काम शुरू करने की तैयारी है। इसके लिए नेपाल के काली गंडकी नदी से 7 फुट लंबे 5 फुट चौड़े आकार के दो शालिग्राम पत्थर तलाश अयोध्या लाए जा रहे हैं। मूर्तिकार शालिग्राम शिलाओं को जल्द भगवान राम की मूर्ति का आकार देंगे।