कब है अक्षय तृतीया? जानें तिथि, सोना खरीदने का शुभ मुहूर्त और महत्व

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नई दिल्ली. अक्षय तृतीया को आखा तीज के नाम से भी जाना जाता है। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि अक्षय तृतीया का पर्व मनाया जाता है। संस्कृत में, अक्षय का अर्थ है ‘शाश्वत, खुशी, सफलता और आनंद की कभी न खत्म होने वाली भावना’, और तृतीया का अर्थ है ‘तीसरा’। अक्षय तृतीया पर सोना खरीदने की भी मान्यता है। कहते हैं अक्षय तृतीया पर सोना खरीदने से समृद्धि और धन लेकर आता है। इस दिन भक्त सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद पूजा करते हैं। वे भगवान विष्णु को अगरबत्ती, चंदन का लेप, तुलसी के पत्ते और फूल चढ़ाते हैं। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, त्रेता युग अक्षय तृतीया के दिन शुरू हुआ था। आइए जानते हैं अक्षय तृतीया की तिथि, शुभ मुहूर्त सोना खरीदने का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि के बारे में।

वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि आरंभ: 22 अप्रैल 2023, शनिवार, प्रातः 07: 49 मिनट से
वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि समाप्त: 23 अप्रैल 2023, रविवार, प्रातः 07: 47 मिनट पर

अक्षय तृतीया पर लक्ष्मी-नारायण और कलश पूजन का समय: 22 अप्रैल 2023 को प्रातः 07:49 से दोपहर 12:20 मिनट तक शुभ मुहूर्त है।
पूजा की कुल अवधि: 04 घंटे 31 मिनट
सोना खरीदने का शुभ मुहूर्त:

अक्षय तृतीया वर्ष के साढ़े तीन शुभ मुहूर्त के रूप में माना जाता है। कहते हैं इसी दिन परशुराम और हयग्रीव का अवतार हुआ था। इसके अलावा ये भी मान्यता है कि त्रेता युग का प्रारंभ भी इसी दिन हुआ था। इस दिन व्यक्ति कई शुभ कार्य कर सकता है। इस दिन गंगा स्नान का भी विशेष महत्व है। जो इस दिन गंगा स्नान करता है वह सभी नकारात्मकताओं से मुक्त हो जाता है। इस दिन पितृ श्राद्ध भी कर सकते हैं। जौ, गेहूँ, चना, सत्तू, दही-चावल, दूध से बनी वस्तुएं आदि पूर्वजों के नाम से दान करना चाहिए और उसके बाद किसी पंडित को भोग लगाना चाहिए। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि इस दिन सोना खरीदना शुभ होता है।

अक्षय तृतीया व्रत के नियमों का पालन करते हुए नीचे दी गई विधि द्वारा करें-
इस दिन व्रत करने वाले को प्रात: काल स्नान आदि से निवृत होकर पीले वस्त्र धारण करने चाहिए।
विष्णु जी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें और उन्हें गंगाजल से स्नान कराएं। इसके बाद तुलसी, पीले फूल की माला या पीले फूल चढ़ाएं।

अब धूप और घी की बत्ती का दीपक जलाकर पीले आसन पर बैठें।
इसके बाद विष्णु सहस्रनाम, विष्णु चालीसा जैसे विष्णु से संबंधित ग्रंथों का पाठ करें।
इसके बाद अंत में विष्णु जी की आरती गाएं।

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