नई दिल्ली: भाद्रपद की पूर्णिमा का एक दिन और अश्विन कृष्णपक्ष के 15 दिन को मिला कर 16 दिन श्राद्ध के होते हैं। इस वर्ष पितृपक्ष की अमावस्या तिथि 25 सितंबर को रविवार और सर्वपितृ अमावस्या का सुयोग इसे मोक्ष अमावस्या की श्रेणी प्रदान कर रहा है। उसी दिन धृति योग भी बन रहा है।
धृति योग के स्वामी जल देवता हैं इसलिए उस दिन पितरों का जल से तर्पण का विशेष महत्व और प्रभाव वाला होगा। इस तिथि पर मात्र जल तर्पण से पितृ न सिर्फ तृप्त होंगे अपितु उनके आशीर्वाद से सफलता और समृद्धि के द्वार भी खुलेंगे। पितृपक्ष में ऐसा शुभ संयोग पांच साल बाद बन रहा है।
श्राद्ध विधि
किसी सुयोग्य विद्वान ब्राह्मण के जरिए ही श्राद्ध कर्म (पिंड दान, तर्पण) करवाना चाहिए।
श्राद्ध कर्म में पूरी श्रद्धा से ब्राह्मणों को तो दान दिया ही जाता है साथ ही किसी गरीब, जरूरतमंद की सहायता भी करें।
गाय, कुत्ते, कौवे आदि पशु-पक्षियों के लिए भी भोजन का एक अंश जरूर डालना चाहिए।
यदि संभव हो तो गंगा नदी के किनारे पर श्राद्ध कर्म करवाना चाहिए। संभव न हो तो घर पर भी इसे किया जा सकता है।
श्राद्ध के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिए। उसके बाद दान दक्षिणा देकर उन्हें संतुष्ट करें।
श्राद्ध पूजा दोपहर के समय शुरू करनी चाहिए।
योग्य ब्राह्मण की सहायता से मंत्रोच्चारण करें और पूजा के पश्चात जल से तर्पण करें।
भोजन डालते समय अपने पितरों का स्मरण करना चाहिए। उनसे श्राद्ध ग्रहण करने का निवेदन करना चाहिए।
श्राद्ध पूजा की सामग्री
रोली, सिंदूर, छोटी सुपारी, रक्षा सूत्र, चावल, जनेऊ, कपूर, हल्दी, देसी घी, माचिस, शहद, काला तिल, तुलसी पत्ता, पान का पत्ता, जौ, हवन सामग्री, गुड़, मिट्टी का दीया, रुई बत्ती, अगरबत्ती, दही, जौ का आटा, गंगाजल, खजूर, केला, सफेद फूल, उड़द, गाय का दूध, घी, खीर, स्वांक के चावल, मूंग, गन्ना।