बांस की राखियों से सजेंगी भाईयों की कलाई, बाजार में लेंगी चीनी राखियों की जगह

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गोरखपुर: वर्षो से उपेक्षित पड़े बांस अब हुनरमंद हांथों में पड़कर अपनी कीमत जताने लगे हैं। गोरखपुर के कैंपियरगंज के लक्ष्मीपुर में कॉमन फैसिलिटी सेंटर (सीएफसी) की उद्यमी महिलाओं ने इसे साकार किया है। रक्षाबंधन पर्व पर इन्ही बांसों की बनी रखी भाई के कलाई पर सजेगी। यह पूरी तरह से इको फ्रेंडली होगी। बाजार में बांस की राखियां चीनी राखियों की जगह लेंगी। टेराकोटा के बाद अब बांस की रंग-बिरंगी राखियां कारीगरों को बाजार देंगी। बांस से बने खिलौनों, गिफ्ट आइटम्स, ज्वेलरी आदि के बाद अब रक्षाबंधन के त्योहार के मद्देनजर बांस से बनी इको फ्रेंडली राखियां बाजार में धूम मचाएंगी।

बांस के बहुरूपी उपयोगिता को देखते हुए इसके उत्पादों के जरिये महिलाओं को रोजगार का नया विकल्प देने के राष्ट्रीय बम्बू मिशन के तहत वन विभाग ने गोरखपुर के कैंपियरगंज के लक्ष्मीपुर में कामन फैसिलिटी सेंटर (सीएफसी) की स्थापना की है। इस सीएफसी के माध्यम से बांस आधारित फर्नीचर व हस्तशिल्प उद्योग को चरणबद्ध तरीके से प्रोत्साहित किया जा रहा है। इस सीएफसी में बांस के उत्पादों से जुड़े कारीगरों के कौशल व क्षमता विकास पर तो ध्यान दिया ही जाता है, उन्हें कई प्रकार के उपकरण व मशीनों पर भी प्रशिक्षित किया जाता है।

सीएफसी के संचालन की जिम्मेदारी वन विभाग ने शारदा महिला स्वयं समूह को सौंपी है। इस समूह की 15 महिलाओं को बैंबू लेडी के नाम से मशहूर नीरा शर्मा की टीम प्रशिक्षण दे चुकी है। यह महिलाएं यहां बांस की नाव, नाइट लैंप स्टैंड, डलिया, सुराही, बांस के गहने आदि तैयार करती हैं। बांस के उत्पादों की जगह-जगह प्रदर्शनी लग चुकी हैं। लोग इन उत्पादों को हाथों हाथ ले भी रहे हैं। इस तरह बैम्बू मिशन, मिशन शक्ति में भी मददगार बन रहा है।

बांस के उत्पाद के प्रति बढ़ रहे लोगों के रुझान को देखते हुए इस रक्षाबंधन में बांस से बनी राखियों को बाजार में उतारा जाएगा। वन विभाग का मानना है कि तरह-तरह की राखियों के बााजर में बांस की राखी प्रमुख आकर्षण होगी। विभाग ने राष्ट्रीय बैम्बू मिशन से जुड़ी महिलाओं को बांस की राखियां तैयार करने का जिम्मा सौंपा है। एक लाख राखियों के लक्ष्य की मार्केटिंग के लिए एक ऑनलाइन कंपनी से करार किया गया है। यानी कि बांस की राखियां ऑनलाइन बाजार से देश के विभिन्न हिस्सों सहित विदेश तक पहुंच सकती हैं।

राष्ट्रीय बैम्बू मिशन के तहत सीएफसी का संचालन करने वाली शारदा स्वयं सहायता समूह की 20 महिलाओं को इसके जरिये वन विभाग रोजगार उपलब्ध करा रहा है। इन महिलाओं को चिड़ियाघर में आउलेट उपलब्ध कराया गया है। बांस का उत्पाद तैयार करने वाली समूह की महिलाएं बांस के गहने, श्रृंगारदान, नाइटलैंप, परदे, नेकलेस, ईयर रिंग, फ्लावर स्टैंड, खिलौने आदि बनाने में पूरी दक्षता हासिल कर ली है। इसकी देन है कि चिड़ियाघर के आउटलेट से महिलाओं का समूह प्रतिमाह 25 से तीस हजार रुपये की कमाई कर रहा है।

राखी बनाने वाले सिकन्दर कहते हैं कि इस बार रक्षाबंधन के पर्व पर यहां की बनी राखियां भाई के हांथों पर सजेंगी। इसके लिए बहुत सारी महिलाएं काम कर रही हैं। डीएफओ विकास यादव ने बताया कि बांस के उत्पादों की बिक्री बढ़ने से लोगों को एक नया विकल्प मिल रहा है। यह सभी उत्पाद इको फ्रैंडली हैं। इस बार बांस की कुल 13 प्रकार की राखियां तैयार कराई जा रही है। पखवारे भर बाद से चिड़ियाघर के आउटलेट पर यह राखियां दिखने भी लगेंगी। इसके लिए स्वयं सहायता समूह को कच्चा उत्पाद उपलब्ध करा दिया गया है।

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