मुंबई : बॉलीवुड के जाने माने निर्माता-निर्देशक यश चोपड़ा आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन हिन्दी सिनेमा के लिए उन्होंने जो योगदान दिया उसे हमेशा याद किया जाता रहेगा. वो यूं हीं नहीं रोमांस के किंग कहलाए उन्होंने फिल्मों में दिखाए जाने वाले प्यार की परिभाषा को ही बदल कर रख दिया. यश चोपड़ा ने छोटे से कमरे से शुरुआत की थी और फिर जो मुकाम हासिल किया वहां तक पहुंचना हर किसी के बस की बात नहीं है.
27 सितंबर को यश चोपड़ा का जन्म लाहौर में हुआ. वो इंजीनियर बनना चाहते थे लेकिन इससे पहले ही उन्होने अपने भाई बी आर चोपड़ा के साथ फिल्मों के निर्देशन में उन्हें असिस्ट करना शुरू कर दिया. यश बेहद प्रतिभाशाली थे उनकी इस प्रतिभा को समझा अभिनेत्री वेजयंती माला ने. यश चोपड़ा ने अपने आखिरी इंटरव्यू में बताया था कि उन्होने ही उन्हें फिल्मों का निर्देशन करने की ओर ध्यान देने की बात की थी. ये बात उनके दिल में घर कर गई और फिर उन्होंने अपने बी आर चोपड़ा का साथ छोड़कर खुद फिल्में बनाने का फैसला ले लिया.
यशराज फिल्म्स के 50 साल पूरे होने पर यश चोपड़ा के बेटे उदय चोपड़ा ने एक भावुक पोस्ट लिखते हुए बताया था कि किस तरह से उनके पिता एक छोटे से कमरे से फिल्मी सफर की शुरुआत की. उन्होंने लिखा था कि यश चोपड़ा बी आर फिल्म्स में सिर्फ एक मुलाजिम की तरह काम करते थे. उन्होंने जब अपना काम शुरू किया तो वी शांता राम ने उनकी प्रतिभा को देखते हुए अपने स्टूडियो का एक छोटा सा कमरा दे दिया. आज वो कंपनी इडंस्ट्री की सबसे बड़ी कंपनी बन चुकी हैं.
यश चोपड़ा पुरानी घिसी पिटी कहानियों से परे हटते हुए रोमांस का एक नया रंग पर्दे पर लाए. यश चोपड़ा ने कई एक्टर्स को स्टार बना दिया. चाहे वो फिल्म दीवार से एंग्री यंग मैन बने अमिताभ हो या फिर सिलसिला का एक मैच्योर प्रेमी, यश चोपड़ा ने लम्हे और दाग जैसी फिल्मों में भी प्यार का बोल्ड अंदाज दिखाया.
अपने फिल्मी करियर में यश चोपड़ा ने ‘कभी-कभी’, ‘त्रिशूल’, ‘काला पत्थर’ , ‘सिलसिला’, ‘डर’, ‘दिल तो पागल है’, ‘वीर जारा’ और ‘जब तक है जान’ जैसी कई ब्लॉक बस्टर फिल्म बनाईं. इन तमाम फिल्मों ने उन्हें किंग और रोमांस बना दिया. साल 2001 में यश चोपड़ा को हिन्दी सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया.