हिमाचल-हिमालय से सम्बन्ध जोड़ राजनीति साध रहे योगी

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गोरखपुर । हिमाचल प्रदेश में चल रहे विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अब एक सधे राजनीतिज्ञ नजर आ रहे हैं। ये न सिर्फ अपने और अवैद्यनाथ के जन्मस्थली से हिमाचल को जोड़ रहे हैं बल्कि इसकी ही आड़ में राजनीति की गोटियां भी सेट कर रहे हैं। हालांकि, गोरक्षपीठ का हिमालय और हिमांचल से त्रेतायुगीन सम्बन्ध है। अब इस सम्बन्ध का लाभ लेने में भारतीय जनता पार्टी कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही। यूपी सीएम और गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ से भाजपा जमकर प्रचार करा रही है। उनकी हर चुनावी सभा में भीड़ का रिकॉर्ड टूटा है। हिमाचल में एक ही दिन की रैली करने वाले योगी कि डिमांड इतनी बढ़ी कि अब तक वह हमीरपुर के बड़सर, मंडी के सरकाघाट एवं दारांग सोलन के दून एवं कसौली कांगड़ा के ज्वाली, पालमपुर एवं ज्वालामुखी, बिलासपुर के घुमारवीं, ऊना के हरोली कुल्लू के आनी और शिमला के ठियोग समेट लगभग दर्जन भर चुनावी सभाएं कर चुके हैं।

कई दशक से गोरखपुर पीठ को कवर करने वाले वरिष्ठ पत्रकार गिरीश पांडेय कहते हैं कि योगी आदित्यनाथ मूल रूप से हिमालय की गोद में बसे देवभूमि उत्तराखंड (पौड़ी गढ़वाल, यमकेश्वर, पंचुर) के हैं। परवरिश एवं पढ़ाई-लिखाई उत्तराखंड में ही हुई। इनके गुरु ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ भी उत्तराखंड (गढ़वाल कांडी) के ही थे। जिस उत्तराखंड ने अवैद्यनाथ को जन्म दिया, उसी ने उनको नया जीवन भी दिया। साधु-संतों के साथ वह ऋषिकेश से केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री एवं कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर गये। इस दौरान उन्हें हैजा हो गया। साथी उनके जीवन की आस को छोड़ आगे बढ़ गए, लेकिन वे बच गये। कालांतर में गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर बने। इन्हे श्रीराम जन्म भूमि आंदोलन की अगुवाई का मौका मिला। इस आंदोलन में गोरक्षपीठ की तीन पीढ़ियों ने हिस्सा लिया। एक सदी में मंदिर को लेकर हर घटनाक्रम में पीठाधीश्वरों की प्रभावी भूमिका रही है।

यह भी संयोग ही था कि राम मंदिर निर्माण के लिए भाजपा ने हिमाचल के पालमपुर में ही प्रस्ताव पारित किया। योगी ने पालमपुर की सभा में इसका जिक्र कर लोगों को खुद से जोड़ने कि भरपूर कोशिश की। जब राममंदिर के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया, जब जन्मभूमि पर भव्य मंदिर के लिए भूमि पूजन हुआ। अब जब करीब दो साल से इसका निर्माण चल रहा है, अवेद्यनाथ के शिष्य योगी आदित्यनाथ ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। इसमें भी इनकी महत्वपूर्ण भूमिका है।

उन्होंने बताया कि पीठ एवं हिमाचल के इस रिश्ते का विस्तार त्रेतायुग तक जाता है। त्रेता युग में कांगड़ा में ज्वालादेवी के यहां आयोजन था। आमंत्रितों में गुरु गोरक्षनाथ भी थे। वहां निरामिष भोजन देख गोरखनाथ ने कहा, मैं तो भिक्षाटन से मिला ही खाता हूं। देवी ने कहा, ‘आप मांग कर लाओ। मैं बनाने के लिए तब तक पानी गर्म करती हूं।’ यह धार्मिक प्रसंग भी पीठ को हिमालय से जोड़ता है। यहां की आमजन में पीठ के प्रति श्रद्धा को जन्म देती है। कहते हैं कि भिक्षाटन पर निकले गुरु गोरखानाथ का पात्र न भर पाया और न वे लौटे ही। तभी से वहां गर्म जलधारा का स्रोत है। पूर्वांचल में मनाई जाने वाली खिचड़ी को भी इसी घटना से जोड़कर देखा जाता है।

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