लखनऊ : उत्तर प्रदेश सरकार ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में लखीमपुर खीरी हिंसा मामले के आरोपियों में से एक केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष मिश्रा की जमानत याचिका का विरोध किया (Opposed) । इस दौरान यूपी सरकार ने कहा कि यह अपराध गंभीर और जघन्य था।
उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद ने न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जेके माहेश्वरी की पीठ से कहा कि यह एक गंभीर और जघन्य अपराध है और इससे समाज में गलत संदेश जाएगा। दरअसल, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फरवरी 2022 में आशीष मिश्रा को जमानत दी थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया और मामले को पुनर्विचार के लिए वापस हाईकोर्ट भेज दिया। हाईकोर्ट ने दोबारा सुनवाई के बाद जुलाई 2022 में जमानत याचिका खारिज कर दी, जिसके बाद आशीष मिश्रा ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
गुरुवार को लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि उसने आरोपी आशीष मिश्रा की जमानत याचिका का विरोध किया था। साथ ही कोर्ट को बताया कि घटना के चश्मदीद गवाह ने आरोपी आशीष मिश्रा को मौके से भागते देखा था और यह बात चार्जशीट में भी है। यूपी सरकार ने कोर्ट में कहा कि अपराध गंभीर श्रेणी का है और ऐसे में आरोपी को जमानत देना समाज पर बुरा असर डाल सकता है।
गौरतलब है कि लखीमपुर खीरी में 3 अक्टूबर 2021 को नए कृषि कानूनों के विरोध में किसान सड़क पर उतर आए थे। आरोप है कि केंद्रीय मंत्री और स्थानीय सांसद अजय मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा ने विरोध कर रहे किसानों पर गाड़ी चढ़ा दी। इसके बाद हुई हिंसा में चार किसानों समेत आठ लोगों की मौत हो गई थी। प्रदर्शनकारियों ने एसयूवी सवार लोगों पर हमला कर दिया था, जिसमें कार का ड्राइवर और दो बीजेपी कार्यकर्ता मारे गए थे।
जमानत पर आशीष मिश्रा की रिहाई का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था और कोर्ट ने जमानत रद्द करते हुए केस इलाहाबाद हाईकोर्ट में नए सिरे से विचार के लिए भेज दिया था। जिसके बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जमानत याचिका रद्द कर दी थी। हाईकोर्ट ने कहा था कि आशीष राजनीतिक रूप से प्रभावशाली है और वह गवाहों को प्रभावित करेगा।